आदि शंकराचार्य जी के प्रकटोत्सव पर *एकात्म पर्व* कार्यक्रम का हुआ आयोजन।
मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद विकासखंड सीहोर के द्वारा सरस्वती शिशु विद्या मंदिर सीहोर में आचार्य शंकर जी के प्रकटोत्सव पर उनके जीवन व दर्शन से व्यक्तियों को उनकी जीवन शैली से अवगत कराना एवं अद्वैत के माध्यम से कथित तथ्य और सिद्धांत जिसमें सांसारिक और दिव्य अनुभव दोनों का मिलन को समझना।
कार्यक्रम का शुभारंभ आदि गुरु शंकराचार्य जी के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम मुख्यवक्ता श्री श्री1008 महामंडलेश्वर यशोदानंदन पंडित अजय रोहित जी महाराज, प्रदेश अध्यक्ष, विश्व धर्म संसद सर्वभौम सनातन धर्म महासभा, अध्यक्षता श्रीमति पारुल उपाध्याय जिला समन्वयक, म प्र जन अभियान परिषद सीहोर, प्रदीप सिंह सेंगर विकासखण्ड समन्वयक, विकासखण्ड सीहोर उपस्थित रहे।
मुख्यवक्ता पंडित अजय पुरोहित जी महाराज ने कहा कि शंकर आचार्य का जन्म ५०७-५०८ ई. पू. में केरल में कालपी अथवा 'काषल' नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। आचार्य शंकर ने आठ वर्ष की अवस्था में उन्होंने सन्यास ग्रहण किया था। और इन्होंने गोविन्द नाथ से संन्यास ग्रहण किया। पहले ये कुछ दिनों तक काशी में रहे, और तब इन्होंने विजिलबिंदु के तालवन में मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया। इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके वैदिक धर्म को पुनरुज्जीवित किया। 32 वर्ष की अल्प आयु में सम्वत 477 ई . पू.में केदारनाथ के समीप शिवलोक गमन कर गए थे। ये भारत के महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होंने अद्वैत वेदांत को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद का खण्डन किया। आपने भारत वर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की जो कि सनातन धर्म में सबसे पवित्र स्थान माने जाते हैं। और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं- (1) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, (2) श्रृंगेरी पीठ, (3) द्वारिका शारदा पीठ और (4) पुरी गोवर्धन पीठ। इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। ये शंकर के अवतार माने जाते है क्योंकि इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बडी विशद और रोचक व्याख्या की है। इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था।
श्रीमती पारुल उपाध्याय जिला समन्वयक ने कहा कि धर्म एवं संस्कृति पर प्राय: होने वाली बहस में यह भुला दिया जाता है कि भारत की पहचान सदा से धर्म एवं संस्कृति की ही रही है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां धर्म संस्कृति का आधार है, वहीं संस्कृति धर्म की संवाहिका है।
जहां धर्म हमारे सर्वस्व का प्रतीक रहा है तो वहीं संस्कृति हमारी स्वाभाविक जीवनशैली की वाहिका रही है। दोनों ने ही भारतीय मूल्यों को जीवंत रखा है और संसार में इसी कारण से भारत का मान-सम्मान रहा है। प्राचीन समय में धर्म एक नागरिक के जीवन के उद्देश्यों का आधार था। धर्म मात्र प्रतीक नहीं होकर समग्र चेतना का स्तंभ था।
प्रदीप सिंह सेंगर विकासखण्ड समन्वयक ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी जिसमें बताया कि यह कार्यक्रम सम्पूर्ण म.प्र. में किया जा रहा है। इस इसके साथ ही मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद की अवधारणा से उपस्थित अतिथियों को अवगत कराया। इस कार्यक्रम में अनिल सक्सेना, विजेन्द्र जायसवाल, कोमल दास वैरागी, रमिला परमार ,नम्रता बरेठा, रवि सोनी, जगदीश दुबे, जितेंद्र परमार, प्रेम दांगी, दिनेश अहोरिया, विदोष गौर, मनोहर जोशी, प्रवेश धनगर, थान सिंह, रामकिशन, जितेंद्र दांगी, सुलोचना मेवाड़ा, संतोष सूर्यवंशी, शिवम सेन , आदि प्रस्फुटन समितियों के सदस्य, स्वैच्छिक संगठन के प्रतिनिधि एवं नगर के गण मान्य एवं प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे। अतिथियों द्वारा सामाजिक क्षेत्र में अच्छा कार्य करने के लिए अनिल सक्सेना, वृजेन्द्र जायसवाल, कोमल दास वैरागी, राकेश शर्मा, नीलम सोनी, सुरेश यादव, सुनील गोस्वामी, विनीता शर्मा, राहुल मेवाड़ा, रोहित प्रजापति, संजू मेवाड़ा, नितिन महेश्वरी, रामकन्या सेन, रामेश्वर सेन, राजाबाबू, चंचल सोनी, दिव्या वैरागी, आदि प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मान किया गया है। कार्यक्रम का संचालन संजय त्यागी एवं आभार प्रताप सिंह मेवाड़ा अध्यक्ष नगर विकास प्रस्फुटन समिति सीहोर ने किया गया।
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